भारतीय रुपये में गिरावट का दौर लगातार जारी है। आज सुबह इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 13 पैसे की गिरावट दर्ज की गई और इसी के साथ यह अपने इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। अभी एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये की कीमत 79.58 है जो इतिहास में सबसे कम है। सोमवार को भी यह कल तक के अपने सबसे निचले स्तर 79.45 पर बंद हुआ था।
मार्च से ही गिर रही है भारतीय रुपये की कीमत
भारतीय रुपये की कीमत में मार्च के बाद से ही गिरावट देखने को मिल रही है और ये कई बार अपने सबसे निचले स्तर को छू चुका है। जनवरी में डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत 74 के आसपास थी, लेकिन मार्च में ये पहली बार 77 से नीचे पहुंचा और तब से लगातार गिर रहा है। रुपये की कीमत में ये गिरावट जल्द थमने की संभावना न के बराबर है और ये 80 के आंकड़े को पार कर सकता है।
गिरावट को रोकने में असफल रहे हैं RBI के प्रयास
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये के मूल्य में गिरावट को रोकने के लिए तमाम प्रयास कर रहा है, हालांकि उसके सारे प्रयास विफल रहे हैं। बुधवार को ही उसने देश में डॉलर का निवेश बढ़ाने के लिए विदेशी निवेशकों को शॉर्ट-टर्म कॉर्पोरेट कर्ज खरीदने की अनुमति दी थी। इसके अलावा उसने सौदों का भुगतान रुपये में करने की अनुमति भी दी है। इससे पहले वह दो बार रेपो रेट में बदलाव कर चुका है और अब ये 4.90 प्रतिशत है।
क्यों गिर रही है रुपये की कीमत?
भारतीय रुपये की कीमत गिरने के कई कारण है। इसका एक अहम कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना है। रूस-यूक्रेन युद्ध और तेल की बढ़ती कीमतों जैसी वजहों से सुरक्षित माने जाने वाले डॉलर में निवेश बढ़ा है। इसके अलावा भारत से विदेशी निवेश के जाने और घरेलू बाजार में विदेशी निवेश के कम होने का असर भी पड़ा है। अक्टूबर 2021 से विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से 3.45 लाख करोड़ रुपये की निकासी की है।
रुपये के गिरने का क्या असर होता है?
रुपये के कमजोर होने का मतलब है कि अब भारत को विदेश से पहले जितना माल खरीदने पर अधिक पैसा खर्च करना पड़ेगा। आयातित सामान के महंगा होने का सीधा असर लोगों की जेब पर भी पड़ेगा। महंगाई बढ़ने पर रेपो रेट में भी इजाफा होगा और बैंकों से मिलने वाला ऋण महंगा हो जाएगा। इसके अलावा रुपये के गिरने पर इक्विटी बाजारों में तेज गिरावट होती है और शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश में कमी आती है।